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पपपपपपपप

New पपपपपपपप - Hindustan Books · 2012. 9. 14. · 2 पपपप पप पपप पपपपप पप पपपप मझगाव ‘िपयतम, पेमपतआया।िसरपरचढाकरन

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  • 1पपपपप पप पपपपपपपपप पप पपपप

    रोगी जब तक बीमार रहता है उसे सुध नही रहती िक कौन मरेी औषिध करता है, कौन मुझे देखने के िलए आता है। वह अपने ही कष मं इतना गसत रहता है िक िकसी दसूरे के बात का धयान ही उसके हृदय मं उतपन नही होता; पर जब वह आरोगय हो जाता है, तब उसे

    अपनी शुशष करनेवालो का धयान और उनके उदोग तथा पिरशम का अनुमान होने लगता है और उसके हृदय मे उनका पेम तथा आदर बढ जाता है। ठीक यही श वृजरानी की थी। जब तक वह सवयं अपने कष मे मगन थी, कमलाचरण की वयाकुलता और कषो का अनुभव न कर सकती थी। िनससनदेह वह उसकी खाितरदारी मे कोई अंश शषे न रखती थी, परनतु यह

    वयवहार- पालन के िवचार से होती थी, न िक सचचे पेम से। परनतु जब उसके हृदय से वह वयथा िमट गयी तो उसे कमला का पिरशम और उदोग समरण हुआ, और यह िचतंा हुई िक इस अपार उपकार का पित- उतर कया दूँ ? मेरा धमर था सेवा- सतकार से उनहे सुख देती, पर सुख

    देना कैसा उलटे उनके पाण ही की गाहक हुई हूं! वे तो ऐसे सचचे िदल से मेरा पेम करे और मै अपना कतरवय ही न पालन कर सकूँ ! ईशर को कया मुँह िदखाऊगी ? सचचे पेम का कमल बहुधा कृपा के भाव से िखल जाया करता है। जहॉं, रप यौवन, समपित और पभुता तथा

    सवाभािवक सौजनय पेम के बीच बोने मे अकृतकायर रहते है, वहॉँ, पाय: उपकार का जादू चल जाता है। कोई हृदय ऐसा वज और कठोर नही हो सकता, जो सतय सेवा से दवीभतू न हो

    जाय। कमला और वृजरानी मे िदनोिदन पीित बढने लगी। एक पेम का दास था, दसूरी

    कतरवय की दासी। समभव न था िक वृजरानी के मुख से कोई बात िनकले और कमलाचरण उसको परूा न करे। अब उसकी ततपरता और योगयता उनही पयतो मे वयय होती थीह। पढना केवल माता- िपता को धोखा देना था। वह सदा रख देख करता और इस आशा पर िक यह

    काम उसकी पसननत का कारण होगा, सब कुछ करने पर किटबद रहता। एक िदन उसने माधवी को फुलवाडी से फूल चुनते देखा। यह छोटा- सा उदान घर के पीछे था। पर कुटुमब

    के िकसी वयिकत को उसे पेम न था, अतएव बारहो मास उस पर उदासी छायी रहती थी। वृजरानी को फूलो से हािदरक पेम था। फुलवाडी की यह दुगरित देखी तो माधवी से कहा िक

    कभी- कभी इसमं पानी दे िदया कर। धीरे- धीरे वािटका की दशा कछु सुधर चली और पौधो मे फूल लगने लगे। कमलाचरण के िलए इशारा बहुत था। तन- मन से वािटका को सुसिजजत करने पर उतार हो गया। दो चतरु माली नौकर रख िलये। िविवध पकार के सनुदर-सनुदर

    पुषप और पौधे लगाये जाने लगे। भॉँित- भॉँितकी घासे और पितयॉँ गमलो मे सजायी जाने लगी, कयािरयॉँ और रिवशे ठीक की जाने लगी। ठौर- ठौर पर लताऍं चढायी गयी। कमलाचरण सारे

    िदन हाथ मे पसुतक िलये फलुवाडी मे टहलता रहता था और मािलयो को वािटका की सजावट और बनावट की ताकीद िकया करता था, केवल इसीिलए िक िवरजन पसन होगी। ऐसे सनेह- भकत का जादू िकस पर न चल जायगा। एक िदन कमला ने कहा-आओ, तुमहे वािटका की सैर

    कराऊ। वृजरानी उसके साथ चली। चॉँद िनकल आया था। उसके उजजवल पकाश मे पषुप और पते परम शोभायमान थे।

    मनद- मनद वायु चल रहा था। मोितयो और बेले की सुगिनध मिसतषक को सुरिभत कर रही

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  • थी। ऐसे समय मे िवरजन एक रेशमी साडी और एक सुनदर सलीपर पिहने रिवशो मे टहलती दीख पडी। उसके बदन का िवकास फूलो को लिजजत करता था, जान पडता था िक फूलो

    की देवी है। कमलाचरण बोला- आज पिरशम सफल हो गया। जैसे कुमकुमे मे गुलाब भरा होता है, उसी पकार वृजरानी के नयनो मे पेम रस भरा

    हुआ था। वह मुसकायी, परनतु कछु न बोली।कमला- मुझ जैसा भागयवान मुनषय संसा मे न होगा।िवरजन- कया मुझसे भी अिधक?

    केमला मतवाला हो रहा था। िवरजन को पयार से गले लगा िदया। कुछ िदनो तक पितिदन का यही िनयम रहा। इसी बीच मे मनोरजंन की नयी सामगी

    उपिसथत हो गयी। राधाचरण ने िचतो का एक सनुदर अलबम िवरजन के पास भेजा। इसमं कई िचत चदंा के भी थे। कही वह बैठी शयामा को पढा रही है कही बैठी पत िलख रही है।

    उसका एक िचत पुरष वेष मे था। राधाचरण फोटोगाफी की कला मे कुशल थे। िवरजन को यह अलबम बहुत भाया। िफर कया था ? िफर कया था? कमला को धुन लगी िक मै भी िचत

    खीचूँ। भाई के पास पत िलख भेजा िक केमरा और अनय आवशयक सामान मरेे पास भेज दीिजये और अभयास आरभं कर िदया। घर से चलते िक सकूल जा रहा हूँ पर बीच ही मे एक पारसी फोटोगाफर की दकूान पर आ बैठते। तीन- चार मास के पिरशम और उदोग से इस

    कला मे पवीण हो गये। पर अभी घर मे िकसी को यह बात मालमू न थी। कई बार िवरजन ने पछूा भी; आजकल िदनभर कहा रहते हो। छुटी के िदन भी नही िदख पडते। पर कमलाचरण

    ने हू-ँ हा करके टाल िदया। एक िदन कमलाचरण कही बाहर गये हुए थे। िवरजन के जी मे आया िक लाओ

    पतापचनद को एक पत िलख डालूँ; पर बकसखेला तो िचटी का कागज न था माधवी से कहा िक जाकर अपने भैया के डेसक मे से कागज िनकाल ला। माधवी दौडी हुई गयी तो उसे

    डसेक पर िचतो का अलबम खुला हुआ िमला। उसने आलबम उठा िलया और भीतर लाकर िवरजन से कहा-बिहन! दखो, यह िचत िमला।

    िवरजन ने उसे चाव से हाथ मे ले िलया और पिहला ही पना उलटा था िक अचमभा-सा हो गया। वह उसी का िचत था। वह अपने पलंग पर चाउर ओढे िनदा मे पडी हुई थी, बाल

    ललाट पर िबखरे हुए थे, अधरो पर एक मोहनी मुसकान की झलक थी मानो कोई मन-भावना सवप देख रही है। िचत के नीचे लख हुआ था- ‘पेम- ’ सवप । िवरजन चिकत थी, मेरा िचत

    उनहोने कैसे िखचवाया और िकससे िखचवाया। कया िकसी फोटोगाफर को भीतर लाये होगे ? नही ऐसा वे कया करेगे। कया आशय है, सवयं ही खीच िलया हो। इधर महीनो से बहुत पिरशम

    भी तो करते है। यिद सवयं ऐसा िचत खीचा है तो वसतुत: पशंसनीय कायर िकया है। दसूरा पना उलटा तो उसमे भी अपना िचत पाया। वह एक साडी पहने, आधे िसर पर आचँल डाले

    वािटका मे भमण कर रही थी। इस िचत के नीचे लख हुआ था- ‘वािटका- भमण। तीसरा पना उलटा तो वह भी अपना ही िचत था। वह वािटका मे पृथवी पर बैठी हार गूँथ रही थी। यह

    िचत तीनो मे सबसे सुनदर था, कयोिक िचतकार ने इसमे बडी कुशलता से पाकृितक रगं भरे थे। इस िचत के नीचे िलखा हुआ था- ‘ ’ अलबेली मािलन । अब िवरजन को धयाना आया िक एक िदन जब मै हार गूँथ रही थी तो कमलाचरण नील के काटे की झाडी मुसकराते हुए िनकले थे। अवशय उसी िदन का यह िचत होगा। चौथा पना उलटा तो एक परम मनोहर और

    सुहावना दृशय िदखयी िदया। िनमरल जल से लहराता हुआ एक सरोवर था और उसके दोनो

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  • तीरो पर जहा तक दृिष पहुँचती थी, गुलाबो की छटा िदखयी देती थी। उनके कोमल पुषप वायु के झोका से लचके जात थे। एसका जात होता था, मानो पकृित ने हरे आकाश मे लाल तारे टाक िदये है। िकसी अंगेजी िचत का अनुकरण पतीत होता था। अलबम के और पने अभी कोरे थे।

    िवरजन ने अपने िचतो को िफर देखा और सािभमान आननद से, जो पतयेक रमणी को अपनी सुनदरता पर होता है, अलबम को िछपा कर रख िदया। संधया को कमलाचरण ने आकर देखा, तो अलबम का पता नही। हाथो तो तोते उड गये। िचत उसके कई मास के किठन पिरशम के फल थे और उसे आशा थी िक यही अलबम उहार देकर िवरजन के हृदय मे

    और भी घर कर लूँगा। बहुत वयाकुल हुआ। भीतर जाकर िवरजन से पछूा तो उसने साफ इनकार िकया। बचेारा घबराया हुआ अपने िमतो के घर गया िक कोई उनमं से उठा ले गया

    हो। पह वहा भी फबितयो के अितिरकत और कुछ हाथ न लगा। िनदान जब महाशय परूे िनराश हो गये तोशम को िवरजन ने अलबम का पता बतलाया। इसी पकार िदवस साननद वयतीत हो रहे थे। दोनो यही चाहते थे िक पेम- कते मे मै आगे िनकल जाऊ! पर दोनो के पेम

    मे अनतर था। कमलाचरण पेमोनमाद मे अपने को भलू गया। पर इसके िवरद िवरजन का पेम कतरवय की नीव पर िसथत था। हा, यह आननदमय कतरवय था।

    तीन वषर वयतीत हो गये। वह उनके जीवन के तीन शुभ वषर थे। चौथे वषर का आरमभ आपितयो का आरमभ था। िकतने ही पािणयो को सासार की सुख- सामिगयॉँ इस पिरमाण से

    िमलती है िक उनके िलए िदन सदा होली और राित सदा िदवाली रहती है। पर िकतने ही ऐसे हतभागय जीव है, िजनके आननद के िदन एक बार िबजली की भाित चमककर सदा के िलए

    लुपत हो जाते है। वृजरानी उनही अभागे मे थी। वसनत की ऋतु थी। सीरी- सीरी वायु चल रही थी। सरदी ऐसे कडाके की पडती थी िक कुओं का पानी जम जाता था। उस समय नगरो मे पलेग का पकोप हुआ। सहसो मनुषय उसकी भेट होने लगे। एक िदन बहुत कडा जवर आया, एक िगलटी िनकली और चल बसा। िगलटी का िनकलना मानो मृतयु का संदश था। कया वैद, कया डाकटर िकसी की कुछ न चलती थी। सैकडो घरो के दीपक बझु गये। सहसो बालक अनाथ और सहसो िवधवा हो गयी। िजसको िजधर गली िमली भाग िनकला। पतयेक मनुषय को अपनी- अपनी पडी हईु थी। कोई िकसी का सहायक और िहतैषी न था।

    माता- िपता बचचो को छोडकर भागे। सतीयो ने परुषो से समबनध पिरतयाग िकया। गिलयो मे, सडको पर, घरो मे िजधर देिखये मृतको को ढेर लगे हुए थे। दुकाने बनद हो गयी। दारो पर

    ताले बनद हो गया। चुतुिदरक धलू उडती थी। किठनता से कोई जीवधारी चलता-िफरता िदखायी देता था और यिद कोई कायरवश घर से िनकला पडता तो ऐसे शीघता से पॉव उठाता

    मानो मृतयु का दतू उसका पीछा करता आ रहा है। सारी बसती उजड गयी। यिद आबाद थे – तो किबसतान या शमशान। चोरो और डाकुओं की बन आयी। िदन दोपहार तोल टूटते थे और सयूर के पकाश मे सेधे पडती थी। उस दारण दु: ख का वणरन नही हो सकता।

    बाबू शयामचरण परम दृढिचत मनुषय थे। गृह के चारो ओर महलले- के महलले शनूय हो गये थे पर वे अभी तक अपने घर मे िनभरय जमे हुए थे लेिकन जब उनका साहस मर गया तो सारे घर मे खलबली मच गयी। गॉँव मे जाने की तयैािरयॉँ होने लगी। मुंशीजी ने उस िजले के कुछ गॉँव मोल ले िलये थे और मझगॉँव नामी गाम मे एक अचछा- सा घर भी बनवा रख था।

    उनकी इचछा थी िक पेशन पाने पर यही रहूँगा काशी छोडकर आगरे मे कौन मरने जाय! िवरजन ने यह सुना तो बहुत पसन हुई। गामय- जीवन के मनोहर दृशय उसके नतेो मे िफर रह े

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  • थे हर-े भरे वृक और लहलहाते हुए खेत हिरणो की कीडा और पिकयो का कलरव। यह छटा देखने के िलए उसका िचत लालाियत हो रहा था। कमलाचरण िशकार खेलने के िलए असत- शसत ठीक करने लगे। पर अचनाक मुनशीजी ने उसे बुलाकर कहा िक तम पयाग जाने के

    िलए तैयार हो जाओ। पताप चनद वहा तुमहारी सहायता करेगा। गॉवो मे वयथर समय िबताने से कया लाभ? इतना सुनना था िक कमलाचरण की नानी मर गयी। पयाग जाने से इनकार कर िदया। बहुत देर तक मुंशीजी उसे समझाते रहे पर वह जाने के िलए राजी न हुआ।

    िनदान उनके इन अंितम शबदो ने यह िनपटारा कर िदया- तुमहारे भागय मे िवदा िलखी ही नही है। मेरा मूखरता है िक उससे लडता हूँ!

    वृजरानी ने जब यह बात सुनी तो उसे बहुत दु: ख हुआ। वृजरानी यदिप समझती थी िक कमला का धयान पढने मे नही लगता; पर जब- तब यह अरिच उसे बरुी न लगती थी,

    बिलक कभी- कभी उसका जी चाहता िक आज कमला का सकूल न जाना अचछा था। उनकी पेममय वाणी उसके कानो का बहुत पयारी मालमू होती थी। जब उसे यह जात हुआ िक कमला

    ने पयाग जाना असवीकार िकया है और लालाजी बहुत समझ रहे है, तो उसे और भी दु: ख हुआ कयोिक उसे कुछ िदनो अकेले रहना सहय था, कमला िपता को आजजेललघनं करे, यह सहय

    न था। माधवी को भेजा िक अपने भैया को बुला ला। पर कमला ने जगह से िहलने की शपथ खा ली थी। सोचता िक भीतर जाऊगा, तो वह अवशय पयाग जाने के िलए कहेगी। वह कया जाने िक यहा हृदय पर कया बीत रही है। बाते तो ऐसी मीठी- मीठी करती ह,ै पर जब कभी पेम- परीका का समय आ जाता है तो कतरवय और नीित की ओट मे मुख िछपाने लगती है। सतय है

    िक सतीयो मे पेम की गंध ही नही होती। जब बहुत देर हो गयी और कमला कमरे से न िनकला तब वृजरानी सवयं आयी और

    बोली- कया आज घर मे आने की शपथ खा ली है। राह देखत-े देखते ऑंखे पथरा गयी।कमला- भीतर जाते भय लगता है।िवरजन- अचछा चलो मै संग- संग चलती हू,ँ अब तो नही डरोगे?कमला- मुझे पयाग जाने की आजा िमली है।िवरजन- मै भी तुमहारे सग चलूँगी!

    यह कहकर िवरजन ने कमलाचरण की ओर आंखे उठायी उनमे अंगरू के दोन लगे हुए थे। कमला हार गया। इन मोहनी ऑखो मे ऑंसू देखकर िकसका हृदय था, िक अपने हठ पर दृढ रहता? कमेला ने उसे अपने कंठ से लगा िलया और कहा- मै जानता था िक तुम जीत

    जाओगी। इसीिलए भीतर न जाता था। रात- भर पेम- िवयोग की बाते होती रही! बार- बार ऑंखे परसपर िमलती मानो वे िफर कभी न िमलेगी! शोक िकसे मालमू था िक यह अंितम भटे है। िवरजन को िफर कमला से िमलना नसीब न हुआ।

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  • 2पपपप पप पपप पपपपप पप पपपप

    मझगाव‘िपयतम,

    पेम पत आया। िसर पर चढाकर नतेो से लगाया। ऐसे पत तुम न लख करो ! हृदय िवदीणर हो जाता है। मै िलखूं तो असंगत नही। यहॉँ िचत अित वयाकुल हो रहा है। कया सुनती थी और कया देखती है ? टूट-े फूटे फूस के झोपडे, िमटी की दीवारे, घरो के सामने

    कूड-े करकट के बडे- बडे ढेर, कीचड मे िलपटी हईु भैसे, दुबरल गाये, ये सब दृशय देखकर जी चाहता है िक कही चली जाऊं। मनुषयो को देखो, तो उनकी सोचनीय दशा है। हिडडयॉँ िनकली हुई है। वे िवपित की मूितरयॉँ और दिरदता के जीिवत िचत है। िकसी के शरीर पर

    एक बेफटा वसत नही है और कैसे भागयहीन िक रात- िदन पसीना बहाने पर भी कभी भरपटे रोिटयॉँ नही िमलती। हमारे घर के िपछवाडे एक गडढा है। माधवी खेलती थी। पॉवँ िफसला

    तो पानी मे िगर पडी। यहॉँ िकमवदनती है िक गडढे मे चडुैल नहाने आया करती है और वे अकारण यह चलनेवालो से छेड- छाड िकया करती है। इसी पकार दार पर एक पीपल का पेड

    है। वह भतूो का आवास है। गडढे का तो भय नही है, परनतु इस पीपल का वास सारे-सारे गॉँव के हृदय पर ऐसा छाया हुआ है। िक सयूासत ही से मागर बनद हो जाता है। बालक और

    सतीया तो उधर पैर ही नही रखते! हॉँ, अकेले- दुकेले पुरष कभी- कभी चले जाते है, पर पे भी घबराये हुए। ये दो सथान मानो उस िनकृष जीवो के केनद है। इनके अितिरकत सैकडो भतू-

    चडुैल िभन- िभन सथानो के िनवासी पाये जाते है। इन लोगो को चुडैले दीख पडती है। लोगो ने इनके सवभाव पहचान िकये है। िकसी भतू के िवषय मे कहा जाता है िक वह िसर पर

    चढता है तो महीनो नही उतरता और कोई दो- एक पजूा लेकर अलग हो जाता है। गाव वालो मे इन िवषयो पर इस पकार वातालाप होता है, मानो ये पतयक घटना है। यहा तक सुना गया है िक चुडैल भोजन- पानी मॉँगने भी आया करती है। उनकी सािडयॉँ पाय: बगुले के पखं की भाित उजजवल होती है और वे बाते कुछ- कुछ नाक से करती है। हॉँ, गहनो को पचार उनकी जाित मे कम है। उनही सतीयो पर उनके आकमणका भय रहता है, जो बनाव शृंगार िकये रगंीन वसत पिहने, अकेली उनकी दृिष मे पड जाये। फूलो की बास उनको बहुत भाती है। समभव नही िक कोई सती या बालक रात को अपने पास फूल रखकर सोये।

    भतूो के मान और पितषा का अनुमान बडी चतुराई से िकया गया है। जोगी बाबा आधी रात को काली कमिरया ओढ,े खडाऊ पर सवार, गॉँव के चारो आर भमण करते है और भलूे-

    भटके पिथको को मागर बताते है। साल- भर मे एक बार उनकी पजूा होती है। वह अब भतूो मे नही वरन् देवताओं मे िगने जाते है। वह िकसी भी आपित को यथाशिकत गॉँव के भीतर पग नही रखने देते। इनके िवरद धोबी बाबा से गॉवँ- भर थराता है। िजस वुक पर उसका वास है, उधर से यिद कोई दीपक जलने के पशात् िनकल जाए, तो उसके पाणो की कुशलता नही। उनहे भगाने के िलए दो बोलत मिदरा काफी है। उनका पुजारी मंगल के िदन उस वृकतले गाजा और चरस रख आता है। लाला साहब भी भतू बन बैठे है। यह महाशय मटवारी थे। उनहं कई पिंडत असिमयो ने मार डाला था। उनकी पकड ऐसी गहरी है िक पाण िलये िबना नही छोडती। कोई पटवारी यहा एक वषर से अिधक नही जीता। गॉँव से थोडी दरू पर एक

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  • पेड है। उस पर मौलवी साहब िनवास करते है। वह बेचारे िकसी को नही छेडते। हॉँ, वहृसपित के िदन पजूा न पहुँचायी जाए, तो बचचो को छेडते है।

    कैसी मूखरता ह!ै कैसी िमथया भिकत ह!ै ये भावनाऍं हृदय पर वजलीक हो गयी है। बालक बीमार हुआ िक भतू की पजूा होने लगी। खेत- खिलहान मे भतू का भोग जहा देिखय,े

    भतू-ही- भतू दीखते है। यहॉँ न देवी है, न देवता। भतूो का ही सामाजय है। यमराज यहॉँ चरण नही रखते, भतू ही जीव- हरण करते है। इन भावो का िकस पकार सुधार हो ? िकमिधकम

    तुमहारीिवरजन

    (2)मझगाव

    पयार,े बहुत िदनो को पशात् आपकी पेरम- पती पापत हुई। कया सचमुच पत िलखने का

    अवकाश नही ? पत कया िलखा है, मानो बेगार टाली है। तुमहारी तो यह आदत न थी। कया वहॉँ जाकर कुछ और हो गये ? तुमहे यहॉँ से गये दो मास से अिधक होते है। इस बीच मं कई

    छोटी- बडी छुिटयॉँ पडी, पर तुम न आये। तुमसे कर बाधकर कहती हूँ- होली की छुटी मे अवशय आना। यिद अब की बार तरसाया तो मुझे सदा उलाहना रहेगा।

    यहॉँ आकर ऐसी पतीत होता है, मानो िकसी दसूरे संसार मे आ गयी हूँ। रात को शयन कर रही थी िक अचानक हा-हा, हू- हू का कोलाहल सुनायी िदया। चौककर उठा बैठी! पछूा

    तो जात हुआ िक लडके घर- घर से उपले और लकडी जमा कर रहे थे। होली माता का यही आहार था। यह बेढंगा उपदव जहा पहुँच गया, ईधन का िदवाला हो गया। िकसी की शिकत

    नही जो इस सेना को रोक सके। एक नमबरदार की मिडया लोप हो गयी। उसमं दस-बारह बैल सुगमतापवूरक बाधे जा सकते थे। होली वाले कई िदन घात मे थे। अवसर पाकर उडा ले

    गये। एक करुमी का झोपडा उड गया। िकतने उपले बेपता हो गये। लोग अपनी लकिडया घरो मे भर लेते है। लालाजी ने एक पेड ईधन के िलए मोल िलया था। आज रात को वह भी होली माता के पेट मे चला गया। दो- तील घरो को िकवाड उतर गये। पटवारी साहब दार पर

    सो रहे थे। उनहे भिूम पर ढकेलकर लोगे चारपाई ले भागे। चतुिदरक ईधन की लटू मची है। जो वसतु एक बार होली माता के मुख मे चली गयी, उसे लाना बडा भारी पाप है। पटवारी

    साहब ने बडी धमिकया दी। मै जमाबनदी िबगाड दूँगा, खसरा झठूाकर दूँगा, पर कुछ पभाव न हुआ! यहा की पथा ही है िक इन िदनो वाले जो वसतु पा जाये, िनिवरघ उठा ले जाये। कौन

    िकसकी पुकार करे ? नवयुवक पतु अपने िपता की आंख बाकर अपनी ही वसतु उठवा देता है। यिद वह ऐसा न कर,े तो अपने समाज मे अपमािनत समझाजा जाए।

    खेत पक गये है।, पर काटने मे दो सपताह का िवलमब है। मरेे दार पर से मीलो का दृशय िदखाई देता है। गहूेँ और जौ के सुथरे खेतो के िकनारे- िकनारे कुसुम के अरण और

    केसर- वणर पुषपो की पिंकत परम सुहावनी लगती है। तोते चतुिदरक मँडलाया करते है। माधवी ने यहा कई सिखया बना रखी है। पडोस मे एक अहीर रहता है। राधा नाम

    है। गत वषर माता- िपता पलेगे के गास हो गये थे। गृहसथी का कुल भार उसी के िसर पर है। उसकी सती तुलसा पाय: हमारे यहा आती है। नख से िशख तक सनुदरता भरी हईु है। इतनी

    भोली हैिक जो चाहता है िक घणटो बाते सुना करँ। माधवी ने इससे बिहनापा कर रखा है।

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  • कल उसकी गुिडयो का िववाह है। तुलसी की गुिडया है और माधवी का गडुडा। सुनती हूँ, बचेारी बहुत िनधनर है। पर मैने उसके मुख पर कभी उदासीनता नही देखी। कहती थी िक उपले बेचकर दो रपये जमा कर िलये है। एक रपया दायज दूँगी और एक रपये मे बराितयो

    का खाना- पीना होगा। गुिडयो के वसताभषूण का भार राधा के िसर है! कैसा सरल संतोषमय जीवल ह!ैलो, अब िवदा होती हूँ। तुमहारा समय िनरथरक बातो मे नष हुआ। कमा करना। तुमहे

    पत िलखने बैठती हूँ, तो लेखनी रकती ही नही। अभी बहुतेरी बाते िलखने को पडी है। पतापचनद से मेरी पालागन कह देना।

    तुमहारीिवरजन

    (3)मझगाव

    पयार,ेतुमहारी, पेम पितका िमली। छाती से लगायी। वाह! चोरी और मुँहजोरी। अपने न आने

    का दोष मेरे िसर धरते हो ? मेरे मन से कोई पछूे िक तुमहारे दशनर की उसे िकतनी अिभलाषा पितिदन वयाकलुता के रप मे पिरणत होती है। कभी- कभी बेसुध हो जाती हूँ। मेरी यह दशा

    थोडी ही िदनो से होने लगी है। िजस समय यहा से गये हो, मुझे जान न था िक वहा जाकर मेरी दलेल करोगे। खरै, तुमही सच और मै ही झठू। मुझे बडी पसनता हुई िक तुमने मरे दोनो पत पसनद िकये। पर पतापचनद को वयथर िदखाये। वे पत बडी असावधानी से िलखे गये है।

    समभव है िक अशुिदया रह गयी हो। मझे िवशास नही आता िक पताप ने उनहे मूलयवान समझा हो। यिद वे मेरे पतो का इतना आदर करते है िक उनके सहार से हमारे गामय- जीवन पर कोई

    रोचक िनबनध िलख सके, तो मै अपने को परम भागयवान् समझती हूँ। कल यहा दवेीजी की पजूा थी। हल, चकी, पुर चलूे सब बनद थे। देवीजी की ऐसी ही

    आजा है। उनकी आजा का उललघनं कौन करे ? हुका- पानी बनद हो जाए। साल- भर मं यही एक िदन है, िजस गावाले भी छटुी का समझते है। अनयथा होली- िदवाली भी पित िदन क े

    आवशयक कामो को नही रोक सकती। बकरा चढा। हवन हुआ। सतू िखलाया गया। अब गाव के बचचे- बचचे को पणूर िवशास है िक पलेग का आगमन यहा न हो सकेगा। ये सब कौतुक

    देखकर सोयी थी। लगभग बारह बजे होगे िक सैकडो मनुषय हाथ मे मशाले िलये कोलाहल मचाते िनकले और सारे गाव का फेरा िकया। इसका यह अथर था िक इस सीमा के भीतर बीमारी पैर न रख सकेगी। फेरे के सपताह होने पर कई मनषुय अनय गाम की सीमा मे घुस गये

    और थोडे फूल,पान, चावल, लौग आिद पदाथर पृथवी पर रख आये। अथात् अपने गाम की बला दसूरे गाव के िसर डाल आये। जब ये लोग अपना कायर समापत करके वहा से चलने लगे तो

    उस गाववालो को सुनगुन िमल गयी। सैकडो मनुषय लािठया लेकर चढ दौडे। दोनो पकवालो मे खबू मारपीट हुई। इस समय गाव के कई मनुषय हलदी पी रहे है।

    आज पात: काल बची- बचायी रसमे परूी हईु, िजनको यहा कढाई देना कहते है। मेरे दार पर एक भटा खोदा गया और उस पर एक कडाह दधू से भरा हुआ रखा गया। काशी नाम का एक भर है। वह शरीर मे भभतू रमाये आया। गाव के आदमी टाट पर बैठे। शंख बजने

    लगा। कडाह के चतुिदरक माला- फूल िबखेर िदये गये। जब कहाड मे खबू उबाल आया तो काशी झट उठा और जय कालीजी की कहकर कडाह मे कूद पडा। मै तो समझी अब यह

    9

  • जीिवत न िनकलेगा। पर पाच िमनट पशात् काशी ने िफर छलाग मारी और कडाह के बाहर था। उसका बाल भी बाका न हुआ। लोगो ने उसे माला पहनायी। वे कर बाधकर पछूने लगे-

    महराज! अबके वषर खेती की उपज कैसी होगी ? बीमारी अवेगी या नही ? गाव के लोग कुशल से रहेगे ? गुड का भाव कैसा रहेगा ? आिद। काशी ने इन सब पशो के उतर सपष

    पर िकंिचत् रहसयपणूर शबदो मे िदये। इसके पशात् सभा िवसिजरत हुई। सुनती हूँ ऐसी िकया पितवषर होती है। काशी की भिवषयवािणया यब सतय िसद होती है। और कभी एकाध असतय

    भी िनकल जाय तो काशी उना समाधान भी बडी योगयता से कर देता है। काशी बडी पहुँच का आदमी है। गाव मे कही चोरी हो, काशी उसका पता देता है। जो काम पुिलस के भेिदयो से परूा न हो, उसे वह परूा कर देता है। यदिप वह जाित का भर है तथािप गाव मे उसका बडा आदर है। इन सब भिकतयो का परुसकार वह मिदरा के अितिरकत और कछु नही लेता। नाम िनकलवाइय,े पर एक बोतल उसको भेट कीिजये। आपका अिभयोग नयायालय मे है; काशी उसके िवजय का अनुषान कर रहा है। बस, आप उसे एक बोतल लाल जल दीिजये।

    होली का समय अित िनकट है ! एक सपताह से अिधक नही। अहा! मेरा हृदय इस समय कैसा िखल रहा है ? मन मे आननदपद गुदगुदी हो रही है। आँखे तुमहे देखने के िलए अकुला रही है। यह सपताह बडी किठनाई से कटेगा। तब मै अपने िपया के दशरन पाऊगी।

    तुमहारीिवरजन

    (4)मझगाव

    पयारे तुम पाषाणहृदय हो, कटर हो, सनेह- हीन हो, िनदरय हो, अकरण हो झठूो हो! मै तुमहे

    और कया गािलया दूँ और कया कोसूँ ? यिद तुम इस कण मेरे सममुख होते, तो इस वजहृदयता का उतर देती। मै कह रही हूँ, तुतम दगाबाज हो। मेरा कया कर लोगे ? नही आते तो मत

    आओ। मेरा पण लेना चाहते हो, ले लो। रलाने की इचछा है, रलाओ। पर मै कयो रोऊ ! मेरी बला रोवे। जब आपको इतना धयान नही िक दो घणटे की याता ह,ै तिनक उसकी सुिध लेता

    आँऊ, तो मुझे कया पडी है िक रोऊ और पाण खोऊ ? ऐसा कोध आ रहा है िक पत फाडकर फेक दूँ और िफर तुमसे बात न करं। हा !

    तुमने मेरी सारी अिभलाषाए ं, कैसे घलू मे िमलायी है ? होली! होली ! िकसी के मुख से यह शबद िनकला और मेरे हृदय मे गुदगुदी होने लगी, पर शोक ! होली बीत गयी और मै िनराश रह गयी। पिहले यह शबद सुनकर आननद होता था। अब दु: ख होता है। अपना- अपना भागय है।

    गाव के भखूे- नगंे लँगोटी मे फाग खेले, आननद मनावे, रगं उडावे और मै अभािगनी अपनी चारपाइर पर सफेद साडी पिहने पडी रहूँ। शपथ लो जो उस पर एक लाल धबबा भी पडा हो।

    शपथ ले लो जो मैने अबीर और गुलाल हाथ से छुई भी हो। मेरी इत से बनी हुई अबीर, केवड े मे घोली गुलाल, रचकर बनाये हुए पान सब तुमहारी अकृपा का रोना रो रहे है। माधवी ने जब

    बहुत हठ की, तो मैने एक लाल टीका लगवा िलया। पर आज से इन दोषारोपणो का अनत होता है। यिद िफर कोई शबद दोषारोपण का मुख से िनकला तो जबान काट लूँगी।

    परसो सायकंाल ही से गाव मे चहल- पहल मचने लगी। नवयवुको का एक दल हाथ मे डफ िलये, अशलील शबद बकते दार- दार फेरी लगाने लगा। मुझे जान न था िक आज यहा इतनी गािलया खानी पडेगी। लजजाहीन शबद उनके मुख से इस पकार बेधडक िनकलते थे

    10

  • जैसे फूल झडते हो। लजजा और संकोच का नाम न था। िपता, पुत के सममुख और पुत, िपता के समख गािलया बक रहे थे। िपता ललकार कर पतु- वधू से कहता ह-ै आज होली ह!ै

    वधू घर मे िसर नीचा िकये हुए सुनती है और मुसकरा देती है। हमारे पटवारी साहब तो एक ही महातम िनकले। आप मिदरा मे मसत, एक मैली- सी टोपी िसर पर रखे इस दल के नायक थे। उनकी बहू- बेिटया उनकी अशलीलता के वेग से न बच सकी। गािलया खाओ और हँसो। यिद

    बदन पर तिनक भी मैल आय,े तो लोग समझेग िक इसका मुहररम का जनम है भली पथा है। लगभग तीन बजे राित के झुणड होली माता के पास पहुँचा। लडके अिगन- कीडािद मे

    ततपर थे। मै भी कई सतीयो के पास गयी, वहा सतीया एक ओर होिलया गा रही थी। िनदान होली म आग लगाने का समय आया। अिगन लगते ही जवाल भडकी और सारा आकाश सवणर-

    वणर हो गया। दरू- दरू तक के पेड- पते पकािशत हो गय। अब इस अिगन- रािश के चारो ओर ‘ होली माता की जय!’ िचलला कर दौडने लगे। सबे हाथो मे गहूेँ और जौ िक बािलया थी,

    िजसको वे इस अिगन मे फेकते जाते थे। जब जवाला बहुत उतेिजत हुई, ‘ ’ तो लेग एक िकनारे खडे होकर कबीर कहने लगे।

    छ: घणटे तक यही दशा रही। लकडी के कनुदो से चटाकपटाक के शबद िनकल रहे थे। पशुगण अपने- अपने खूँटो पर भय से िचलला रहे थे। तलुसा ने मुझसे कहा- अब की होली की जवाला टेढी जा रही है। कुशल नही। जब जवाला सीधी जाती है, गाव मे साल- भर आननद की बधाई बजती है। परनतु जवाला का टढेी होना अशुभ है िनदान लपट कम होने लगी। आँच की

    पखरता मनद हुई। तब कछु लोग होली के िनकट आकर धयानपवूरक देखने लगे। जैसे कोइ वसतु ढूँढ रहे हो। तुलसा ने बतलाया िक जब बसनत के िदन होली नीवं पडती है, तो पिहले

    एक एरणड गाड देते है। उसी पर लकडी और उपलो का ढेर लगाया जाता है। इस समय लोग उस एरणड के पौधे का ढूँढ रहे है। उस मनुषय की गणना वीरो मे होती है जो सबसे पहले उस पौधे पर ऐसा लकय करे िक वह टूट कर दजू जा िगर। पथम पटवारी साहब पैतरे बदलते

    आय,े पर दस गज की दसूी से झाककर चल िदये। तब राधा हाथ मे एक छोटा- सा सोटा िलये साहस और दृढतापवूरक आगे बढा और आग मे घुस कर वह भरपरू हाथ लगाया िक पौधा अलग जा िगरा। लोग उन टुकडो को लटून लगे। माथे पर उसका टीका लगाते है और उसे

    शुभ समझते है। यहा से अवकाश पाकर पुरष- मणडली दवेीजी के चबतूरे की ओर बढी। पर यह न

    समझना, यहा देवीजी की पितषा की गई होगी। आज वे भी गिजया सुनना पसनद करती है। छोट-े बडे सब उनहं अशलील गािलया सुना रहे थे। अभी थोडे िदन हुए उनही दवेीजी की पजूा

    हुई थी। सच तो यह है िक गावो मे आजकल ईशर को गाली देना भी कमय है। माता-बिहनो की तो कोई गणना नही।

    पभात होते ही लाला ने महाराज से कहा- आज कोई दो सेर भगं िपसवा लो। दो पकारी की अलग- अलग बनवा लो। सलोनी आ मीठी। महारा ज िनकले और कई मनुषयो को पकड लाये। भाग पीसी जाने लगी। बहुत से कुलड मँगाकर कमपवूरक रखे गये। दो घडो मं

    दोनो पकार की भाग रखी गयी। िफर कया था, तीन- चार घणटो तक िपयकडो का ताता लगा रहा। लोग खबू बखान करते थे और गदरन िहला- िहलाकर महाराज की कुशलता की पशंसा करते थे। जहा िकसी ने बखान िकया िक महाराज ने दसूरा कुलड भरा बोले- ये सलोनी है। इसका भी सवाद चखलो। अजी पी भी लो। कया िदन- िदन होली आयेगी िक सब िदन हमारे

    हाथ की बटूी िमलेगी ? इसके उतर मे िकसान ऐसी दृिष से ताकता था, मानो िकसी ने उसे

    11

  • संजीवन रस दे िदया और एक की जगह तीन- तीन कुलड चट कर जाता। पटवारी कक जामाता मनुशी जगदमबा पसाद साहब का शुभागमन हुआ है। आप कचहरी मे अरायजनवीस

    है। उनहे महाराज ने इतनी िपला दी िक आपे से बाहर हो गये और नाचने- कूदने लगे। सारा गाव उनसे पोदरी करता था। एक िकसान आता है और उनकी ओर मुसकराकर कहता है- तुम यहा ठाढी हो, घर जाके भोजन बनाओ, हम आवत है। इस पर बडे जोर की हँसी होती है, काशी भर मद मे माता लटा कनधे पर रखे आता और सभािसथत जनो की ओर बनावटी कोध

    से देखकर गरजता है- महाराज, अचछी बात नही है िक तुम हमारी नयी बहुिरया से मजा लटूते हो। यह कहकर मनुशीजी को छाती से लगा लेता है।

    मुंशीजी बचेारे छोटे कद के मनुषय, इधर- उधर फडफडाते है, पर नकारखाने मे ततूी की आवाज कौन सुनता है ? कोई उनहे पयार करता है और गले लगाता है। दोपहर तक यही

    छेड- छाड हुआ की। तुलसा अभी तक बैठी हुई थी। मैने उससे कहा- आज हमारे यहा तुमहारा नयोता है। हम तुम संग खायेगी। यह सुनते ही महरािजन दो थािलयो मे भोजन परोसकर लायी। तुलसा इस समय िखडकी की ओर मुँह करके खडी थी। मैने जो उसको हाथ

    पकडकर अपनी और खीचा तो उसे अपनी पयारी- पयारी ऑंखो से मोती के सोने िबखेरते हुए पाया। मै उसे गले लगाकर बोली- सखी सच- सच बतला दो, कयो रोती हो? हमसे कोइर दुराव

    मत रखो। इस पर वह और भी िससकने लगी। जब मैने बहुत हठ की, उसने िसर घुमाकर कहा-बिहन! आज पात: काल उन पर िनशान पड गया। न जाने उन पर कया बीत रही होगी।

    यह कहकर वह फूट- फूटकर रोने लगी। जात हुआ िक राधा के िपता ने कुछ ऋण िलया था। वह अभी तक चुका न सका था। महाजन ने सोचा िक इसे हवालात ले चलूँ तो रपय े वसलू हो जाये। राधा कनी काटता िफरता था। आज देिषयो को अवसर िमल गया और वे अपना काम कर गये। शोक ! मूल धन रपये से अिधक न था। पथम मुझ जात होता तो बचेारे पर तयोहार के िदन यह आपित न आने पाती। मैने चपुके से महाराज को बुलाया और

    उनहे बीस रपये देकर राधा को छुडाने के िलये भेजा। उस समय मेरे दार पर एक टाट िबछा िदया गया था। लालाजी मधय मे कालीन पर

    बैठे थे। िकसान लोग घुटने तक धोितया बाधे, कोई कुती पिहने कोई नगन देह, कोई िसर पर पगडी बाधे और नगंे िसर, मुख पर अबीर लगाये- जो उनके काले वणर पर िवशषे छटा िदखा

    रही थी- आने लगे। जो आता, लालाजी के परैो पर थोडी- सी अबीर रख देत। लालाली भी अपने तशतरी मे से थोडी- सी अबीर िनकालकर उसके माथे पर लगा देते और मुसकुराकर

    कोई िदललगी की बात कर देते थे। वह िनहाल हो जाता, सादर पणाम करता और ऐसा पसन होकर आ बैठता, मानो िकसी रकं ने रत- रािश पायी है। मुझे सपप मे भी धयान न था िक

    लालाजी इन उजडड दहेाितयो के साथ बैठकर ऐसे आननद से वतालाप कर सकते है। इसी बीच मे काशी भर आया। उसके हाथ मे एक छोटी- सी कटोरी थी। वह उसमे अबीर िलए हुए था। उसने अनय लोगो की भाित लालाजी के चरणो पर अबीर नही रखी, िकंतु बडी धृषता से

    मुटी- भर लेकर उनके मुख पर भली- भाित मल दी। मै तो डरी, कही लालाजी रष न हो जायँ। पर वह बहुत पसन हुए और सवयं उनहोने भी एक टीका लगाने के सथान पर दोनो हाथो

    से उसके मुख पर अबीर मली। उसके सी उसकी ओर इस दृिष से देखते थे िक िनससंदेह तू वीर है और इस योगय है िक हमारा नायक बने। इसी पकार एक- एक करके दो- ढाई सौ मनुषय

    एकत हुए ! अचानक उनहोने कहा- आज कही राधा नही दीख पडता, कया बात है ? कोई उसके घर जाके देखा तो। मुंशी जगदमबा पसाद अपनी योगयता पकािशत करने का अचछा

    12

  • अवसी देखकर बोले उठे- हजूर वह दफा 13 न ं. अिलफ ऐकट (अ) मे िगरफतार हो गया। रामदीन पाडे ने वारणट जारी करा िदया। हरीचछा से रामदीन पाडे भी वहा बैठे हुए थे। लाला

    सने उनकी ओर परम ितरसकार दृिष से देखा और कहा- कयो पाडेजी, इस दीन को बनदीगृह मे बनद करने से तुमहारा घर भर जायगा ? यही मनुषयता और िशषता अब रह गयी है। तुमहे

    तिनक भी दया न आयी िक आज होली के िदन उसे सती और बचचो से अलग िकया। मै तो सतय कहता हूँ िक यिद मै राधा होता, तो बनदीगृह से लौटकर मेरा पथम उदोग यही होता िक िजसने मुझे यह िदन िदखाया है, उसे मै भी कुछ िदनो हलदी िपलवा दूँ। तुमहे लाज नही आती

    िक इतने बडे महाजन होकर तुमने बीस रपये के िलए एक दीन मनुषय को इस पकार कष मे डाला। डूब मरना था ऐसे लोभ पर! लालाजी को वसतुत: कोध आ गया था। रामदीन ऐसा लिजजत हुआिक सब िसटी- िपटी भलू गयी। मुख से बात न िनकली। चुपके से नयायालय की

    ओर चला। सब-क-े सब कृषक उसकी ओर कोध- पणूर दृिष से देख रहे थे। यिद लालाजी का भय न होता तो पाडेजी की हडडी- पसली वही चरू हो जाती।

    इसके पशात लोगो ने गाना आरमभ िकया। मद मे तो सब-क-े सब गाते ही थे, इस पर लालजी के भातृ- भाव के सममान से उनके मन और भी उतसािहत हो गये। खबू जी तोडकर गाया। डफे तो इतने जोर से बजती थी िक अब फटी और तब फटी। जगदमबापसाद ने दुहरा

    नशा चढाया था। कछु तो उनके मन मे सवत: उमंग उतपन हुई, कुछ दसूरो ने उतेजना दी। आप मधय सभा मे खडा होकर नाचने लगे; िवशास मानो, नाचने लग। मैने अचकन, टोपी, धोती और मूँछोवाले पुरष को नाचते न देखा था। आध घणटे तक वे बनदरो की भाित उछलते- कूदते रहे। िनदान मद ने उनहे पृथवी पर िलटा िदया। ततपशात् एक और अहीर उठा एक

    अहीिरन भी मणडली से िनकली और दोनो चौक मे जाकर नाचने लगे। दोनो नवयुवक फुतीले थे। उनकी कमर और पीठ की लचक िवलकण थी। उनके हाव-भाव, कमर का लचकना,

    रोम- रोम का फडकना, गदरन का मोड, अंगो का मरोड देखकर िवसमय होता था बहुत अभयास और पिरशम का कायर है।

    अभी यहा नाच हो ही रहा था िक सामने बहुत- से मनुषय लबंी- लंबी लािठया कनधो पर रखे आते िदखायी िदये। उनके संग डफ भी था। कई मनुषय हाथो से झाझ और मजीरे िलये हुए थे। वे गाते- बजाते आये और हमारे दार पर रके। अकसमात तीन- चार मुनषयो ने िमलकर ‘ऐसे आकाशभेदी शबदो मे अररर... ’ कबीर की धविन लगायी िक घर काप उठा। लालाजी

    िनकले। ये लोग उसी गाव के थे, जहा िनकासी के िदन लािठया चली थी। लालजी को देखते ही कई पुरषो ने उनके मुख पर अबीर मला। लालाजी ने भी पतयुतर िदया। िफर लोग फशर पर बैठा। इलायची और पान से उनका सममान िकया। िफर गाना हुआ। इस गाववालो ने भी

    अबीर मली और मलवायी। जब ये लेग िबदा होने लगे, तो यह होली गायी:

    ‘ ’सदा आननद रहे िह दारे मोहन खेले होरी।

    िकतना सहुावना गीत है! मुझे तो इसमे रस और भाव कूट- कूटकर भारा हुआ पतीत होता है। होली का भाव कैसे साधारण और संिकपत शबदो मे पकट कर िदया गया है। मै

    बारमबार यह पयारा गीत गाती हूँ, आननद लटूती हूँ। होली का तयोहार परसपर पेम और मेल बढाने के िलए है। समभव सन था िक वे लोग, िजनसे कुछ िदन पहले लािठया चली थी, इस

    गाव मे इस पकार बेधडक चले आते। पर यह होली का िदन है। आज िकसी को िकसी से

    13

  • देष नही है। आज पेम और आननद का सवराजय है। आज के िदन यिद दुखी हो तो परदेशी बालम की अबला। रोवे तो यवुती िवधवा ! इनके अितिरकत और सबके िलए आननद की बधाई

    है।सनधया- समय गाव की सब सतीया हमारे यहा खलेने आयी। मातजी ने उनहे बडे आदर

    से बैठाया। रगं खेला, पान बाटा। मै मारे भय के बाहर न िनकली। इस पकार छटुी िमली। अब मुझे धयान आया िक माधवी दोपहर से गायब है। मैने सोचा था शायद गाव मे होली खेलने गयी हो। परनतु इन सतीयो के संग न थी। तुलसा अभी तक चुपचाप िखडकी की ओर मुँह िकये बैठी थी। दीपक मे बती पडी रही थी िक वह अकसमात् उठी, मेरे चरणो पर िगर पडी और फूट- फूटकर रोने लगी। मैने िखडकी की ओर झाका तो देखती हूँ िक आगे-आगे

    महाराज, उसके पीछे राधा और सबसे पीछे रामदीन पाडे चल रहे है। गाव के बहत से आदमी उनकेस संग है। राधा का बदन कुमहलाया हुआ है। लालाजी ने जयोही सुना िक राधा आ गया,

    चट बाहर िनकल आये और बडे सनहे से उसको कणठ से लगा िलया, जैसे कोई अपने पुत का गले से लगाता है। राधा िचलला- िचललाकर के चरणो मे िगर पडी। लालाजी ने उसे भी बडे पेम से उठाया। मेरी ऑंखो मे भी उस समय ऑसंू न रक सके। गाव के बहुत से मनुषय

    रो रहे थे। बडा करणापणूर दृशय था। लालाजी के नतेो मे मैने कभी ऑंसू ने देखे थे। वे इस समय देखे। रामदीन पाणडेय मसतक झुकाये ऐसा खडा था, माना गौ- हतया की हो। उसने

    कहा- मरे रपये िमल गय,े पर इचछा ह,ै इनसे तुलसा के िलए एक गाय ले दूँ। राधा और तुलसा दोनो अपने घर गये। परनतु थोडी देर मे तुलसा माधवी का हाथ

    पकडे हँसती हुई मरे घर आयी बोली- इनसे पछूो, ये अब तक कहा थी? मै- कहा थी ? दोपहर से गायब हो ? माधवी- यही तो थी।मै- यहा कहा थी ? मैने तो दोपहर से नही देखा। सच- सख् बता दो मै रष न

    होऊगी।माधवी- तलुसा के घर तो चली गयी थी।मै- तुलसा तो यहा बैठी ह,ै वहा अकेली कया सोती रही ? तुलसा- (हँसकर) सोती काहे को जागती रह। भोजन बनाती रही, बरतन चौका करती

    रही।माधवी- हा, चौका- बरतर करती रही। कोई तुमहार नौकर लगा हुआ है न!

    जात हुअ िक जब मैने महाराज को राधा को छुडाने के िलए भेजा था, तब से माधवी तुलसा के घर भोजन बनाने मे लीन रही। उसके िकवाड खोले। यहा से आटा, घी, शकर सब ले गयी। आग जलायी और पिूडया, कचौिडया, गुलगुले

    और मीठे समोसे सब बनाये। उसने सोचा थािक मै यह सब बताकर चुपके से चली जाऊगी। जब राधा और तुलसा जायेगे, तो िविसमत होगे िक कौन बना गया! पर सयात् िवलमब अिधक

    हो गया और अपराधी पकड िलया गया। देखा, कैसी सुशीला बाला है। अब िवदा होती हूँ। अपराध कमा करना। तुमहारी चेरी हूँ जैसे रखोगे वैसे रहूँगी। यह

    अबीर और गुलाल भेजती हूँ। यह तुमहारी दासी का उपहार है। तुमहे हमारी शपथ िमथया सभयता के उमंग मे आकर इसे फेक न देना, नही तो मेरा हृदय दुखी होगा।

    तुमहारी,िवरजन

    14

  • (5)मझगाव

    ‘पयार!े तुमहारे पत ने बहुत रलाया। अब नही रहा जाता। मुझे बुला लो। एक बार देखकर

    चली आँऊगी। सच बताओं, यिद मे तुमहारे यहा आ जाऊं, तो हँसी तो न उडाओगे? न जाने मन मे कया समझोग ? पर कैस आऊं? तुम लालाजी को िलखो खबू! कहेगे यह नयी धनु

    समायी है। कल चारपाई पर पडी थी। भोर हो गया था, शीतल मनद पवन चल रहा था िक सतीया

    गाने का शबद सुनायी पडा। सतीया अनाज का खेत काटने जा रही थी। झाककर देखा तो दस- दस बारह- बारह सतीयो का एक- एक गोल था। सबके हाथो मे हिंसया, कनधो पर गािठया

    बाधने की रसस् ओर िसर पर भुने हुए मटर की छबडी थी। ये इस समय जाती है, कही बारह बजे लौटेगी। आपस मे गाती, चुहले करती चली जाती थी।

    दोपहर तक बडी कुशलता रही। अचानक आकश मेघाचछन हो गया। ऑधंी आ गयी और ओले िगरने लगे। मैने इतने बडे ओले िगरते न देखे थे। आलू से बडे और ऐसी तेजी से िगरे जैसे बनदकू से गोली। कण- भर मे पृथवी पर एक फुट ऊंचा िबछावन िबछ गया। चारो तरफ से कषृक भागने लगे। गाये, बिकरया, भेडे सब िचललाती हुई पेडो की छाया ढूँढती, िफरती थी। मै डरी िक न- जाने तुलसा पर कया बीती। आंखे फलैाकर देखा तो खलुे मैदान मे

    तुलसा, राधा और मोिहनी गाय दीख पडी। तीनो घमासान ओले की मार मे पडे थे! तुलसा क े िसर पर एक छोटी- सी टोकरी थी और राधा के िसर पर एक बडा- सा गटा। मेरे नेतो मे आंसू भर आये िक न जाने इन बेचारो की कया गित होगी। अकसमात एक पखर झोके ने राधा के िसर से गटा िगरा िदया । गटा का िगरना था िक चट तुलसा ने अपनी टोकरी उसके िसर पर औंधा दी। न- जाने उस पषुप ऐसे िसर पर िकतने ओले पडे। उसके हाथ कभी पीठ पर जाते, कभी िसर सुहलाते। अभी एक सेकणेड से अिधक यह दशा न रही होगी िक राधा ने िबजली

    की भाित जपककर गटा उठा िलया और टोकरी तुलसा को दे दी। कैसा घना पेम ह!ै अनथरकारी दुदवे ने सारा खेल िबगाड िदया ! पात: काल सतीया गाती हईु जा रही थी।

    सनधया को घर- घर शोक छाया हुआ था। िकतना के िसर लहू- लुहान हो गय,े िकतने हलदी पी रहे है। खेती सतयानाश हो गयी। अनाज बफर के तले दब गया। जवर का पकोप है सारा गाव

    असपताल बना हुआ है। काशी भर का भिवषय पवचन पमािणत हुआ। होली की जवाला का भेद �